सरकारी कर्मचारीयो का 18 महीने का डीए 75 हज़ार करोड़ किया हज़म
जनता को अभी केंद्र और राज्य सरकार का वह कड़वा सच्च मालूम ही नहीं है जिसमें सरकार केंद्रीय कर्मचारीयो के 18 महीने का डीए 75 हज़ार करोड़ नहीं दिए, उसके बाद भी कर्मचारीयो की पगार से और अधिक काट लिए। सभी कर्मचारीयो ने कोरोना काल समझ कर गरीब लोगों का भला होगा इसलिए एक दिन की अपनी पगार देते हुए संकोच नहीं किया परन्तु उसके बाद भी मीडिया में कही यह नहीं दिखाया गया और अब 18 महीने का डीए 75 हज़ार करोड़ नहीं दीया।
इधर जब 18 महीने इंतज़ार करने के बाद अब सरकारी कर्मचारीयो का महंगाई भत्ता बढ़ा है तो मीडिया में यह दिखाया जा रहा है की सरकार पर पड़ेगा अधिक बोझ, सरकारी कर्मचारीयो की बल्ले बल्ले, सरकारी कर्मचारीयो की चाँदी, सरकारी कर्मचारीयो को तोहफ़ा, होली से पहले दिवाली, इससे राजस्व पर पड़ेगा 25000 करोड़ का बोझ ।
इस प्रकार की न्यूज़ से व्यापरीयो और आम जनता को गुमराह करती है मीडिया जबकि असलियत यह होती है की सरकार सरकारी कर्मचारी को कुछ भी एक्स्ट्रा नहीं देती है, जो उनके हक़ का होता है उससे भी काम देती है।
अब सरकार ने ऐसा कर दिया है तो कोई भी बोलने को त्यार नहीं है। सरकारी कर्मचारीयो का 18 महीने का डीए 75 हज़ार करोड़ से सरकार को लाभ होगा। सरकारी कर्मचारीयो ने कोरोना काल में सरकार को 75000 करोड़ दान दिए।
जबकि सरकारी कर्मचारीयो ने कोरोना काल में भी दिन रात काम किया था, ताकि आम जन तक आवश्यक चीजें, सेवा और सुविधा पहुँच सके। वह भी अपनी और परिवार की ज़िंदगी और भविष्य को दाव पर लगा कर जिसमें सैकड़ों सरकारी कर्मचारी शहीद भी हो गए। इतना सब होने के बाद भी यह कोई नहीं सोच रहा ऐसा होने से सरकारी कर्मचारीयो के मनोबल पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? उनकी कार्य निष्पादन शमता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कितना नकरात्मक होगा इसका प्रभाव? किसी को फ़ुरसत नहीं है सोचने की शायद किसी को नहीं।


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